ख्वाबों के जंगल में भटकते हुए
पीली धूप के किसी पेड़ तले
उकताए, हारे, हांफते
एक दूसरे को निहारते...
-सैय्यद जैगम इमाम की कविता का एक अंश
पीली धूप के पेड़ आपने कहीं देखे हैं....शायद नहीं...इन दरख्तों को आप महसूस कर सकते हैं...हकीकत में नहीं बल्कि ख्वाबों में.....अपने साथी जैगम इमाम की कविता जब सुन रहा था तब मन ही मन यही सोचा....
चटख रंग आपको अपनी ओर खींचते हैं जिसमें हम मन के धूसर....बुझे रंगों को कहीं दफन कर देते हैं....चाहे हरा हो या पीला या फिर नीला....कभी कभी लाल भी...ये कुछ ऐसे रंग हैं जो अक्सर हमें अपने ख्वाबों को सतरंगा बुनने के काम आते हैं.....
बचपन के दिनों में कभी किसी राइम की बुक में या किस्से कहानियों की किताबों में छोटे-छोटे दरख्त देखता था----पन्नों पर छपा आसमान और इस पर टंके तारे-चांद देखता था तो कई बार मन इतना ललचाता था.. मानों इन्हें छू लूं....अजब सी मायावी और सम्मोहक दुनिया थी जिसके घुमावदार रास्तों में भटकता रहता था....छोटे छोटे ख्वाब---बेसिर-पैर की हसरतें---अजब सा तिलिस्म....जासूसी उपन्यासों से लेकर वेताल की कहानियों, राजा-रानी की दुनिया से लेकर चंदामामा...औऱ भी ना जाने कितना कुछ...
आज जब पलटकर देखता हूं तो कभी हंसी आती है... कभी लगता है कि आप जिन मोड़ों से गुजर चुके होते हैं वो उस वक्त बेहद घुमावदार भले ही लगे हों पर अब कितने आसान महसूस होते हैं...
लेकिन तलाश तब भी होती थी...जो कभी पूरी नहीं होती थी...तलाश अब भी है जो पता नहीं कब पूरी होगी....
जो ख्वाब कल बड़े लगते थे आज वो मामूली लगते हैं....जो हसरतें आज बड़ी लग रही हैं शायद कल इनके बारे में सोचने की फुर्सत भी ना मिले....
चाहे जो भी हो पर ये तय है कि ख्वाबों के जंगलों में यूं ही भटकने का मज़ा ही कुछ और है...खासकर तब जबकि उकताए थके हारे किसी पेड़ के नीचे हांफते सुस्ता रहे हों...
ये रोमांच कई बरस पहले भी खींचता था
औऱ आज भी खींचता है
पीली धूप के उस पेड़ की तलाश तब भी थी
औऱ अब भी है
क्या पता किसी दिन वाकई मुझे मिल जाए पीली धूप का वो पेड़!!!
आइये दुआ करें!!
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4 comments:
जी ज़रूर मिलेगा, बहुत बढ़िया लेख!
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
शुक्रिया विनय भाई
बहुत बढ़िया लेख!
सर, शानदार....मेरी कविता का बिल्कुल सही मतलब। मन को अभिभूत करने वाली है आपकी लेखनी।
शुक्रिया...आपका जैगम
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