Thursday, October 30, 2008

हत्यारे दौर में अब किसी को नाम मत बताना !

जिन लोकल ट्रेनों को मुंबई की लाइफ लाइन कहा जाता है...वही लाइफलाइन धर्मदेव के लिए डेथ वारंट लेकर आई...बड़े अरमानों के साथ धर्मदेव ने खोपोली से लोकल पकड़ी होगी...पहले कुर्ला औऱ फिर गोरखपुर के लिए ट्रेन पकड़नी थी...पर्व के मौके पर जा रहा था...जाहिर है सभी के लिए कुछ ना कुछ तोहफे रहे होंगे...१४ महीने की बिटिया के लिए गुड़िया भी खरीदी होगी...बुजुर्ग मां-बाप के लिए भी लिया होगा कुछ सामान....लेकिन सबकुछ बिखर गया...नाम और पता बताना उसके लिए जिंदगी की सबसे महंगी औऱ जानलेवा भूल साबित हुई....ये धर्मदेव के लिए इतना बड़ा अपराध साबित हुआ कि अंधेरी हल्की सर्द हो चली रात में उन गुंडों ने उसपर ताबड़तोड़ वार किए और फिर जो हुआ वो आप सबके सामने है...
धर्मदेव के परिवारवाले जिंदगी में कभी इस दर्द से शायद ही उबर पाएं...उसकी नन्ही बिटिया का इंतजार भी अब कभी खत्म नहीं होगा....उसके भाई...नातेदार...रिश्तेदार....सब को जो जख्म मिले हैं उसे भरने के लिए कोई मरहम काफी नहीं होगा....
जांचें होती रहेंगी...कानून अपना काम करता रहेगा....मुंबई की लोकल ट्रेनें भी अपनी रफ्तार से दौड़ती रहेंगी....वो ट्रेन भी नहीं थमेगी जिसपर धर्मदेव ने जिंदगी का आखिरी सफर तय किया...लेकिन क्या वाकई सबकुछ पहले जैसा ही होगा...?? जवाब है शायद नहीं....दरअसल ये घटना महज घटना नहीं बल्कि गवाह है एक भरे-पूरे दौर के हत्यारा बन जाने का...दस्तावेज है सियासत की भेंट चढ़ती जिंदगियों का...ये घातक होती राजनीति के क्रूर नतीजों की ओर इशारा है....
ऐसे में क्या आप भी अगली बार मुंबई में ट्रेन से गुजर रहे हों औऱ कोई पूछे कि आपका नाम क्या है...? तो क्या आप नाम बताएंगे! पूछे कि आप कहां के रहने वाले हैं...तो उसे ये जवाब देना चाहेंगे कि आप यूपी या बिहार के अमुक जिले के अमुक शहर से हैं....
वाकई हत्यारा दौर है भाई...नाम बताना तो सोच-समझकर बताना

3 comments:

Prabuddha said...

सच पूछिए तो बहुत डर लगने लगा है...डर इस बात से कि कैसे एक इंसान...नहीं,नहीं इंसान तो वो हो ही नहीं सकता, कैसे एक आतंकवादी(चौंकिए मत ये शब्द राज ठाकरे के लिए ही है) के सामने पूरी व्यवस्था ने घुटने टेक रखे हैं।

कुन्नू सिंह said...

चार लोग थे और हाथ तक नही उठाए।
क्या उनहे उन गूंडो(गूंडो की भी बेजती होगी)
को मार्ना नही चाहीये था।

चार लोग अगर मारते तो जान तक सवाल ही नही उठता।

कोई भी अपनी आत्म suraksha कर सकता है।

मै ईस पर कूछ और नही बोलना चाहता हूं। क्यो की उस छोटी बच्ची का चेहरा मेरे सामने घूमता है।

Udan Tashtari said...

बहुत ही अफसोसजनक!!