Friday, October 31, 2008

बड़ा बेदर्द पेशा है, इसमें कोई साझीदार नहीं!

वो खबर आंखों के आगे से किसी भी आम खबर की तरह गुजर जाती...लेकिन ऐसा नहीं था...जिंदगी के चंद बरस साथ काम किया था...एक ही दफ्तर में आना जाना...चंद डेस्कों का फासला...लेकिन ये फासला अक्सर मिट जाया करता...जब हम किसी बात पर मजाक करते...गपियाते...हंसते-बोलते....किसी मुद्दे पर किसी की धज्जियां उड़ाते....लेकिन अचानक वो मनहूस खबर आंखों के आगे से गुजरी तो अंदर तक हिल गया...हां, दीवाली के दिन ही तो नज़र पड़ी थी उस खबर पर...पल भर के लिए यकीन नहीं हुआ...खबर थी एक पत्रकार के असमय निधन की...शैलेंद्र प्रसाद...दिल्ली के एक अखबार में सालों से काम कर रहे थे....जिन लोगों ने उन्हें देखा था...साथ काम किया था...वो उनका मुस्कुराता चेहरा कभी नहीं भूल सकते...वही शैलेंद्र जी अब हमारे बीच नहीं हैं...फिर दूसरी खबर ये भी सामने आई कि उनके अंतिम संस्कार के वक्त उस अखबार का कोई भी बड़ा नाम मौजूद नहीं था...जिस अखबार के लिए शैलेंद्र जी ने सालों खून पसीना बहाया...जिसके लिए जिंदगी के कई साल खाक किए....जाड़े-गर्मी की परवाह नहीं की....
दरअसल आप पाठक हैं तो अखबारों और पत्रकारों की ताकत के तमाम किस्से सुनते हैं...लेकिन बाहर से चमत्कारी औऱ तिलिस्मी दिखने वाली इस दुनिया के कई अंधेरे कोने हैं...कई अंधी सुरंगें हैं...बिचौलियों की एक पूरी लॉबी है जो मालिकान के इर्द गिर्द कुंडली जमाए बैठी रहती है...जिनकी वजह से आम पत्रकारों की आवाज कभी नहीं सुनी जाती...ये व्यवस्था अभी से नहीं सालों से हिंदी अखबारों को खाए जा रही है...ऐसा नहीं कि सारे अखबारों का यही हाल है...लेकिन बड़े अफसोस के साथ कहना चाहूंगा कि हिंदी पट्टी के ज्यादातर अखबारों को ये घुन बरसों से खाए जा रहा है...संपादक दिन-ब-दिन मालिक से भी अमीर होता जा रहा है....जबकि आम पत्रकार का बुरा हाल है...वो पत्रकार है...तो हौसला उसके अंदर जरूर होगा...वो आपके सामने रोएगा-गिड़गिड़ाएगा नहीं ये भी सच है...लेकिन उसकी माली हालत की भी जरा सोचिए...ये भी सोचिए कि एक दिन जब वो चल बसेगा तो उसकी मौत पर आंसू बहाने भी अखबार से कोई नहीं आएगा...जो अखबार करीना और बिपाशा के किस्सों से पन्ने-दर-पन्ने रंग देते हैं उन अखबारो में इतनी भी जगह नहीं होगी कि किसी पन्ने पर चौदह प्वाइंट में ही सही पर ये खबर छाप दी जाए कि उसका एक कर्मचारी अब नहीं रहा...वाकई इस पथभ्रष्ट दौर में अब किसी अखबार से आप इतनी भी सहानुभूति की उम्मीद नहीं रख सकते....
और शैलेंद्र जी के साथ भी यही हुआ...
दुख की इस घड़ी में पूरी आस्था के साथ बस यही प्रार्थना है कि ईश्वर उनके परिवार को हौसला दे....पीड़ा सहने की शक्ति दे...आमीन

3 comments:

Udan Tashtari said...

हम भी आपकी प्रार्थना में शामिल हैं.

Anonymous said...

शायद ईश्वर को भी भले लोगों की ज़रुरत रहती है इसीलिये उसने इतनी जल्दी शैलेंद्र जी को अपने पास बुला लिया। शैलेंद्र जी को हम भी जानते रहे हैं लेकिन इसे उनके व्यक्तित्व की कमी कहें या खासियत वो अपने साथ हो रहे अच्छे-बुरे के बारे में चेहरे से कुछ भी प्रकट नहीं कर पाते थे। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और उनके अकेले पड़े परिवार को इतना बड़ा दुख सहने की शक्ति। मिहिर बोस, उनके परिवार की मदद के लिये कुछ करें क्या हम लोग?

laffaj no 1 said...

Bahut kameene hote hain wo log jo apne andar ki insaniyat nikalkar paisa batorne me lage huye hain.