उस रोज भी हमेशा की तरह सूरज निकला....जाड़े की सुबह...बादलों से ढंका आसमान...गीली सर्द सुबह......रात भर झमाझम बारिश हुई...बाहर भीगती रही अन्नू बाबू की बाइक...नालों में पानी भर गया था...पेड़ जो मुहल्ले में थोड़े बहुत बच गए थे उनमें से दो तीन अपन के अहाते में भी थे....वे सब भी अहसास दिला रहे थे कि वाकई रात किस तरह से बरसती रही है....पानी पानी जमीन...बादल बादल आसमान....
चौराहे तक सिगरेट लाने जाते भी तो कैसे...दूसरे कमरे में सो रहे दोस्तों की सिगरेट से काम चलाने की जुगत की...लेकिन अफसोस....सारी सिगरेटें रात की बहस में धुआं हो चुकी थीं.....रजाई से निकलना भी मुश्किल....बाहर जाने की कौन कहे....
हां...तभी वो पोस्टकार्ड आया...आया नहीं बल्कि यूं कहें कल ही पहुंच चुका था किसी की नजर नहीं पड़ी आते जाते पैरों से अनायास दबे कुचले पोस्टकार्ड की क्या बिसात....
डॉक्टर साहब भी जग चुके थे...हम पांच में सबसे सात्विक...इतने साधु कि सिगरेट पीने का मतलब कैरेक्टर लेस होने से कम नहीं...औऱ एक-आध पैग लगा ली फिर तो उनकी नज़र में आपसे अधम दुनिया में कोई नहीं...
डॉक्टर साहब चश्मा पहन चुके थे...पोस्टकार्ड को गौर से उलट पलट कर देखा....और चिकोटी काटकर अपने रूम सखा को जगाया..अजी देखिए...ये अन्नू बाबू हैं ना बड़े गजब हैं भाई....अरे उठिए ना...देखिए तो सही क्या चिट्ठी भेजे हैं....
चिट्ठी का मजमून
सी-13 के साथियों
अब तक गुरु की तलाश में था...लगता है अपन को गुरु मिल गए हैं...उम्मीद है तुम सभी को मेरी कमी खलेगी....
बस इतना ही...
जॉन डिकोस्टा की डायरी-पृष्ठ संख्या-3
5 comments:
koi khat aakhiri nahin hota, koi na koi or khat bhee aayega
akhiri khat......ye kaise ho sakta hai
Fixe!
ये डॉक्टर साहब, खुद चंदन कस्तूरी खाते थे और दूसरों को गुटखा भी नहीं खाने देते थे भाई। हिमांशु जी कहां है कामरेड आजकल। मनीषवा से मुलाकात होती है के नहीं।
हिमांशु जी इन दिनों इलाहाबाद हिंदुस्तान के संपादक हैं...औऱ मनीष कई सालों तक गाजियाबाद अमर उजाला की तथाकथित संपादकी करने के बाद एक टीवी चैनल का उद्धार कर रहे हैं
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