Sunday, June 7, 2009

अजीब दास्तां है ये...

सोचा था, आज भी नहीं लिखूंगा...लेकिन ऐसा हो ना सका...सो एक बार फिर हाजिर हूं....
जून की तपती दुपहरियों के इस जानलेवा मौसम में दिल्ली अक्सर लुटी-पिटी और बेदिल सी दिखती है....तब भी ऐसा ही था...सुबह से गर्म हवा के थपेड़े औऱ चढ़ते सूरज के साथ धूप का मिजाज उन दिनों भी इतना ही तीखा हुआ करता था...नॉर्थ कैंपस में एडमिशन के लिए लड़के लड़कियों की फौज तब भी पसीने से तरबतर हैरान-परेशान कॉलेज दर कॉलेज चक्कर काटती थी...आज भी ऐसा ही माहौल दिख जाएगा....
-जब जनवरी में गली करतार सिंह पर आखिरी पोस्ट लिखी थी....तब भी ब्लॉग की दुनिया लिक्खाड़ों से भरी-पूरी थी....गली-मुहल्ले-सड़कें-बस्ती-टोले गुलजार थे ...आज भी है...
-तो क्या सबकुछ यूं ही चलता रहता है! बदलता कुछ भी नहीं---या जो बदलता दिखता है---वो सब धोखा है--माफ कीजिए-बदलाव के दर्शन में आपको उलझाना कतई मकसद नहीं...मैं तो मौसम के बेरहम अंदाज को बयां कर रहा था....जो सुबह से ही कहीं निकलना मुहाल कर देता है....
खैर ये दास्तां अजीब है....इसलिए कृपया ओर-छोर तलाशने की कोशिश नहीं कीजिएगा...ये पता नहीं कहां शुरू हुई औऱ ना जाने कब खतम होगी....

2 comments:

RAJNISH PARIHAR said...

जी वाकई में ऐसा ही है...सब कुछ अजीब सा लगता है...पर यही जीवन है..जो चलता ही रहता है..!बस हम पीछे रह जाते है..कई बार..

Anil Pusadkar said...

लगता तो यही है कि कुछ् भी नही बद्ला।सही लिखा आपने।