Wednesday, December 10, 2008

आंधी की तरह उड़कर इक राह गुज़रती है...

अचानक मन उदास हो चला...कहानियां अब भी हैं जो अब सामने आ रही हैं....मुंबई हमलों की कहानियां...घटनाएं जो आज भी मन को छू जाती हैं....वाकये जो सिहरने के लिए मजबूर कर देते हैं...इस लेख के लिए हेडिंग जो चुनी बेशक वो टोन आपको बदला सा लगे...पर मुझे इस उदास दौर में सबसे बेहतर यही शीर्षक लगा...इसकी मेरे पास ना तो कोई व्याख्या है...ना ही कोई दलील...अच्छा लगा सो लिख दिया....
मन जाने क्यों....बार बार मन मुंबई की ओर भटकता है...बल्कि यूं कहें बहकता है....उस शहर से पता नहीं कौन सा रिश्ता है जो मुझे अक्सर खींचता है....गिरगाम चौपाटी हो या फिर सिद्धिविनायक....या फिर अक्सा बीच....या जुहू चौपाटी ...गेटवे पर कबूतरों के बीच मटरगश्ती...और समंदर की लहरों के बीच स्टीमर पर घूमना.....कुछ नाता जरूर है जो मुझे मुंबई से जोड़ता है....हवाओं में अजब सी मिठास है जिसे मैं आज भी महसूस करता हूं....ना तो वहां पला-बढ़ा औऱ ना ही सालों रहा....ना बचपन गुजरा औऱ ना ही बाद के दिन....लेकिन मैं उस शहर में जाता रहा हूं....वहां की गंध को आत्मा से महसूस किया है.....वो गंध आज भी मुझे लुभाती है....
और यही वजह है कि 26 नवंबर के हमलों के बाद वो शहर मुझे और अपना लगने लगा है...कुछ दोस्त हैं जो वहां से अक्सर मुझे याद करते हैं....कुछ पुराने नाते हैं जो शहर से रिश्ता तोड़ चुके हैं....लेकिन मुझे उनके बहाने भी मुंबई बहुत याद आती है....
शायद मुझे इसीलिए गुलजार की ये पंक्तियां याद आ रही हैं....
शायद इसीलिए आज मन बहक रहा है...
काश कि कोई राह होती जो आंधी की तरह उड़कर हमें मंजिलों तक पहुंचा सकती....

4 comments:

ghughutibasuti said...

आपकी भावनाओं को समझ रही हूँ । मैं भी वहाँ केवल तीन वर्ष रही हूँ परन्तु स्वंय को उस दिन वहाँ से बहुत जुडा हुआ महसूस कर रही थी ।
घुघूती बासूती

विधुल्लता said...

दिल से लिखे शब्द,अपनों के दुःख दर्द मैं और उस शहर मैं अपने होने का अहसास खुबसूरत है ,शुभकामना ..लिखतें रहें

सुप्रतिम बनर्जी said...

आपने जो लिखा है, उसे शायद सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है। ये एक अजीब 'अनकंडिशनल लव' जैसा है... वो प्यार जो बुरे दिनों से शुरू हुआ... बहुत ख़ूब।

Ravi Buleiy said...

गुजर गया जो वक्त उसे,
इतनी फुर्सत थी ही कहां,
आओ, आते लम्हों से हम,
अपने दिल की बात कहें...