देश
की सरहदों से बहुत दूर सिंगापुर के उस अस्पताल के सर्द मुर्दाघर में पड़ा था उसका
शव....वहां
न तो तनी मुट्ठियां थीं..ना विरोध में लग रहे नारे...वहां अपनों के नाम पर थे
परिवार के कुछ लोग....जिस
बिटिया के बेहतर जिंदगी के सपने देखे ...जिसे मेहंदी भरे हाथों के साथ डोली में
विदा करने के सपने देखे ,
आज
उसी की अर्थी को कंधा देकर वतन लौटने के लिए
मजबूर.... जिंदगी की टिमटिमाती लौ अचानक बुझ गई....उम्मीद की धुंधली रौशनी अंधेरे में
बदल गई....सात समंदर पार वो परिवार ही नहीं रोया ..ये मातम पूरे मुल्क का
है...ये
मौत महज उस लड़की की नहीं जिसने जिंदगी के सपने पूरे होने से पहले जिंदगी के सबसे
घिनौने सच का सामना किया....ये शर्मिंदगी हमारे वक्त की है....जिसके लिए कोई माफी
नहीं.....आज
सारी दुआएं बेकार चली गईं जो सफदरजंग अस्पताल से सिंगापुर के सफर तक साथ
थीं...क्योंकि अब वो कभी लौटकर नहीं आएगी..... लेकिन पीछे छूट गया है शर्मिंदगी का
अहसास जो खंजर की तरह सीने में पैबस्त है
मरने
के बाद अगर कोई लौट सकता तो क्या वो लड़की भी दुबारा ऐसे शर्मिंदा कर देने वाले
वक्त में लौटकर आने की हिम्मत जुटाती....जिसके स्याह हाशियों पर लिखी है उसके मौत
की इबारत....जिसके माथे पर टंकी है कुछ दरिंदों के कलंक की काली
कथा
मरने
से पहले उसने क्या सोचा होगा....जब उसने आखिरी सांसें ली होंगी तो उसके जेहन में
क्या चल रहा होगा.....जब जीने की ख्वाहिशों के बाद भी उसे दम तोड़ना पड़ा तो उसकी
आखिरी इच्छा क्या रही होगी.....क्या वो हमें माफ कर सकी होगी....क्या वो इस शहर को
माफ कर सकी होगी....क्या वो इस हत्यारे समय को माफ कर सकी होगी....जो उसके कत्ल का
गवाह बना.......
लेकिन
कहते हैं ना.... परियां कभी नहीं मरतीं....वो सितारों के बच कहीं बस जाती हैं....और
वो परी ही तो थी...जिसका कोई गुनाह नहीं था...सिवा इसके कि वो जिंदा रहना चाहती
थी....इस दुनिया में जीना चाहती थी....पापा की लाड़ली बनकर नाम कमाना चाहती
थी....परिवार के अरमानों का आशियाना बसाना चाहती थी.....तो क्या वो परी सितारों के
बीच से कहीं दुनिया के इस शर्मनाक दौर के बारे में सोच रही होगी.....आत्मा अजर
है...आत्मा अमर है....शास्त्र यही कहते हैं...तो क्या उसकी आत्मा इस हत्यारे दौर को
माफ कर सकेगी...जिसके माथे पर बड़े बड़े हरफों में लिखा है समय का सबसे शर्मनाक
सच....
अदालतें फैसला दे देंगी....समाज मातम मना लेगा.....उसकी मौत पर हम खून के
आंसू रो लेंगे....लेकिन अफसोस कि इस शर्मिंदगी से हम कभी नहीं उबर
पाएंगे....क्योंकि कुछ जुर्म इतने संगीन होने हैं जिसकी कोई माफी नहीं
होती....
1 comment:
अचानक से तीन साल बाद आपके विचार मुझे पढ़ने को मिले हैं. काफी अच्छा लिखा है..
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