चमकती दमकती दुनिया का ये वो कड़वा सच है जिसका दर्द दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में कभी भी महसूस किया जा सकता है...आपके सामने से बेहद परिचित सा चेहरा गुजर रहा है...लेकिन उसकी निगाह मे एक अजीब सा अजनबीपन है...एक सर्द सा अहसास....वो आपको पहचान रहा है...लेकिन फिर भी अनजान है....भई उसकी अब हैसियत हो गई है...बड़ी कार पर घूमता है...बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं औऱ उसकी बीवी भी अब अंग्रेजी बोलने लगी है....कभी किसी पॉश कॉलोनी के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में टकरा जाए तो उससे ये उम्मीद मत रखिएगा...कि वो आपको तपाक से लगे लगा लेगा...किसी मॉल में सामने से आ रहा हो तो गनीमत इसी में है कि आप किसी बगल की दुकान में शोकेस पर रखी चौंधियाती चीजें देखने लगें...लेकिन फिर भी नजर मिल गई...और आप हंस दिए....तो गए काम से...क्योंकि उसकी आंखों का अजनबीपन आपको भीतर तक चीर कर रख देगा...
दोस्तों ये समय वाकई त्रासद है...यहां कई बार आपको जीने के ऐसे ही मौके मिलेंगे....लोगों की ऐसी ही बर्फीली निगाहों का सामना करना पड़ेगा....क्योंकि इस शहर में सबकी कुछ ना कुछ हैसियत है...और हर अगला अपने आप में किसी तोप से कम नहीं....तो फिर हमारे-आपके लिए सही क्या है...सही तो खैर नहीं मालूम...लेकिन हो सके तो चढ़ती ठंड के इन दिनों में छत पर गुनगुनी धूप में दरी या चटाई पर लेटकर मजे से पढ़िए (अगर आप छुट्टियों में हों) औऱ याद कीजिए बशीर बद्र की उन नायाब लाइनों को--जिसमें बशीर साहब फरमाते हैं---तुम्हे जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो....
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3 comments:
परिचित सा चेहरा गुजर रहा है...लेकिन उसकी निगाह मे एक अजीब सा अजनबीपन है...एक सर्द सा अहसास....वो आपको पहचान रहा है...लेकिन फिर भी अनजान है...
sard hotee garmjoshiyon ka aur badlatey rishton par aap ne achcha likha hai...yahi machini zindagi ka ek kadva sach hai
subah subah ek achchi tahreer padhne ko mili....sahi likha hai .
alpna ji, pallvi ji...tahedil se shukriya.
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