Saturday, September 29, 2012
इस शोक का कोई नाम नहीं
निजी शोक को बयान करना दुनिया में सबसे मुश्किल है...पंत जी का जाना सिर्फ मेरे लिए ही नहीं हर उस आदमी के लिए निजी से भी ज्यादा शोक की खबर है जिन्होंने उनके साथ कभी वक्त गुजारा..रविशंकर पंत लखनऊ से वाया मेरठ नोएडा आए और कब हम सबकी जिंदगी के अटूट हिस्सा बन गए पता ही नहीं चला...हम सब उन्हें प्यार से पंत जी कहते थे..सलीका और नफासत पंत जी की रगों में दौड़ता था...विनम्र इतने कि बड़े से बड़ा विशेषण भी छोटा पड़ जाएगा...आज वही पंत जी झटके में हम सब को छोड़कर चले गए...ये खबर मेरठ हिंदुस्तान के एक साथी के एसएमएस के जरिए पहुंची...जैसे ही नजर गई दिमाग ने काम करना बंद कर दिया...वो पुराने दिन अचानक सामने कौंधने लगे....वो सी-13..अमर उजाला नोएडा के वो बिंदास दिन...रात रात भर बहस के वो कभी ना खत्म होने वाले सिलसिले...खुद को बड़ा साबित करने की बचकानी होड़...लेकिन उन महफिलों में जो शख्स वाकई सबसे बड़ा था वो यकीनन पंत जी थे....
RIP pant ji
नोट: पंत जी का निधन कुछ अरसा पहले हुआ...ये पंक्तियां तभी की लिखी हुई हैं जिन्हें मैं अब जाकर पब्लिश कर पा रहा हूं
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