Sunday, December 30, 2012

Bye...Bye Braveheart of India

 
देश की सरहदों से बहुत दूर सिंगापुर के उस अस्पताल के सर्द मुर्दाघर में पड़ा था उसका शव....वहां न तो तनी मुट्ठियां थीं..ना विरोध में लग रहे नारे...वहां अपनों के नाम पर थे परिवार के कुछ लोग....जिस बिटिया के बेहतर जिंदगी के सपने देखे ...जिसे मेहंदी भरे हाथों के साथ डोली में विदा करने के सपने देखे , आज उसी की अर्थी को कंधा देकर वतन लौटने के लिए मजबूर.... जिंदगी की टिमटिमाती लौ अचानक बुझ गई....उम्मीद की धुंधली रौशनी अंधेरे में बदल गई....सात समंदर पार वो परिवार ही नहीं रोया ..ये मातम पूरे मुल्क का है...ये मौत महज उस लड़की की नहीं जिसने जिंदगी के सपने पूरे होने से पहले जिंदगी के सबसे घिनौने सच का सामना किया....ये शर्मिंदगी हमारे वक्त की है....जिसके लिए कोई माफी नहीं.....आज सारी दुआएं बेकार चली गईं जो सफदरजंग अस्पताल से सिंगापुर के सफर तक साथ थीं...क्योंकि अब वो कभी लौटकर नहीं आएगी..... लेकिन पीछे छूट गया है शर्मिंदगी का अहसास जो खंजर की तरह सीने में पैबस्त है

 कितना भी रो लें...शोक मना लें....लेकिन शर्मिंदगी का ये अहसास हमारे, आपके पूरे दौर को चुभता रहेगा....
कहते हैं अधूरी ख्वाहिशें लिए जब कोई मरता है तो मुक्ति नहीं मिलती....तो क्या वो लड़की भी नफरत की दूनिया से बहुत बहुत दूर कुछ सोच रही होगी.....अगर सोच रही होगी तो इस समय के बारे में क्या सोचेगी...जिसके दामन पर हैं उसके खून के निशान......उस रात के बारे में क्या सोचेगी....जिसने एक झटके में उसकी जिंदगी में हमेशा के लिए अंधेरा भर दिया.....

मरने के बाद अगर कोई लौट सकता तो क्या वो लड़की भी दुबारा ऐसे शर्मिंदा कर देने वाले वक्त में लौटकर आने की हिम्मत जुटाती....जिसके स्याह हाशियों पर लिखी है उसके मौत की इबारत....जिसके माथे पर टंकी है कुछ दरिंदों के कलंक की काली कथा
मरने से पहले उसने क्या सोचा होगा....जब उसने आखिरी सांसें ली होंगी तो उसके जेहन में क्या चल रहा होगा.....जब जीने की ख्वाहिशों के बाद भी उसे दम तोड़ना पड़ा तो उसकी आखिरी इच्छा क्या रही होगी.....क्या वो हमें माफ कर सकी होगी....क्या वो इस शहर को माफ कर सकी होगी....क्या वो इस हत्यारे समय को माफ कर सकी होगी....जो उसके कत्ल का गवाह बना.......

लेकिन कहते हैं ना.... परियां कभी नहीं मरतीं....वो सितारों के बच कहीं बस जाती हैं....और वो परी ही तो थी...जिसका कोई गुनाह नहीं था...सिवा इसके कि वो जिंदा रहना चाहती थी....इस दुनिया में जीना चाहती थी....पापा की लाड़ली बनकर नाम कमाना चाहती थी....परिवार के अरमानों का आशियाना बसाना चाहती थी.....तो क्या वो परी सितारों के बीच से कहीं दुनिया के इस शर्मनाक दौर के बारे में सोच रही होगी.....आत्मा अजर है...आत्मा अमर है....शास्त्र यही कहते हैं...तो क्या उसकी आत्मा इस हत्यारे दौर को माफ कर सकेगी...जिसके माथे पर बड़े बड़े हरफों में लिखा है समय का सबसे शर्मनाक सच....
अदालतें फैसला दे देंगी....समाज मातम मना लेगा.....उसकी मौत पर हम खून के आंसू रो लेंगे....लेकिन अफसोस कि इस शर्मिंदगी से हम कभी नहीं उबर पाएंगे....क्योंकि कुछ जुर्म इतने संगीन होने हैं जिसकी कोई माफी नहीं होती....

 लेकिन आज आप भी उसकी याद में एक मोमबत्ती जरूर जलाना....नम आंखों से उसके लिए दुआ जरूर करना....एक प्रार्थना मौन होकर जरूर करना कि इस दुनिया में ना सही उस दुनिया में जरूर उसे बेहतर दुनिया मिले..जहां खुशी से वो चहचहा सको...जहां नई जिंदगी बसा सके
 
 
 

Saturday, September 29, 2012

इस शोक का कोई नाम नहीं



निजी शोक को बयान करना दुनिया में सबसे मुश्किल है...पंत जी का जाना सिर्फ मेरे लिए ही नहीं हर उस आदमी के लिए निजी से भी ज्यादा शोक की खबर है जिन्होंने उनके साथ कभी वक्त गुजारा..रविशंकर पंत लखनऊ से वाया मेरठ नोएडा आए और कब हम सबकी जिंदगी के अटूट हिस्सा बन गए पता ही नहीं चला...हम सब उन्हें प्यार से पंत जी कहते थे..सलीका और नफासत पंत जी की रगों में दौड़ता था...विनम्र इतने कि बड़े से बड़ा विशेषण भी छोटा पड़ जाएगा...आज वही पंत जी झटके में हम सब को छोड़कर चले गए...ये खबर मेरठ हिंदुस्तान के एक साथी के एसएमएस के जरिए पहुंची...जैसे ही नजर गई दिमाग ने काम करना बंद कर दिया...वो पुराने दिन अचानक सामने कौंधने लगे....वो सी-13..अमर उजाला नोएडा के वो बिंदास दिन...रात रात भर बहस के वो कभी ना खत्म होने वाले सिलसिले...खुद को बड़ा साबित करने की बचकानी होड़...लेकिन उन महफिलों में जो शख्स वाकई सबसे बड़ा था वो यकीनन पंत जी थे....
RIP pant ji



नोट: पंत जी का निधन कुछ अरसा पहले हुआ...ये पंक्तियां तभी की लिखी हुई हैं जिन्हें मैं अब जाकर पब्लिश कर पा रहा हूं