Sunday, March 25, 2007
जब बौराए मन
मई में जब मन बौराए....दिन हवा के थपेड़ों सा उड़न छू हो जाए....शाम आकर ठिठक जाए...उन दिनों को घर की बालकनी में बैठकर याद करना...या फिर बंद पड़ी किताबों की अलमारी से कोई भूली बिसरी सी कविता पढ़ना...या फिर हर की पैड़ी पर बैठकर गंगा की लहरों में डूबते-उतराते दीयों को देखना...सोचना....गुनगुनाना...अपनी ही बातों में खो जाना..
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